काश कि कोई ऐसा दिन हो जाए ज़माने के सारे सितम खो जाएं।
ज़ुल्मी जब-जब ज़ुल्म करना चाहे उसके मन में कानून का डर हो जाए। मजदूर अपनी मजदूरी पाकर संतुष्ट हो जाए और उसके बच्चे पेट भर खाना खाकर खुश हो जाएँ।
इंसान इंसान की इज्ज़त करे सभी धर्मो में मुहब्बत हो जाए। हर लड़की यहां सुरक्षित महसूस करे बस ज़माना इतना शिक्षित हो जाए। यहाँ हर व्यक्ति इतना सक्षम हो जाए कि-- यह देश महान से महानतम हो जाए। काश कि कोई ऐसा दिन हो जाए ज़माने के सारे सितम खो जाएं।
मैं मानता हूँ, ज़माना अब भी उतना बुरा नहीं मगर ऐसा हो तो, क्या बात हो जाए! और यह मुमकिन है, अगर तुम मान लो इन अल्फाजों को ठान लो। काश की कोई ऐसा दिन हो जाए ज़माने कि सारे सितम खो जाएं।
-साकिब उल इस्लाम राँची, भारत ई-मेल: saquib.jac@gmail.com |